एमपीजे
ने समाज
में बंधुता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक राज्यव्यापी स्तर पर अभियान शुरू
किया है। इस बंधुता अभियान का
उद्देश्य,
“भारत के संवैधानिक विचार को बढ़ावा देना है, जो अपने सभी नागरिकों को व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता
बढ़ाने के लिए कार्य करने का अवसर प्रदान करता है।” यह अभियान 17 नवम्बर 2018 को
शुरू हुआ, जो 26 नवम्बर 2018 तक चलेगा। इस अभियान के तहत सामाजिक संवाद, वर्कशॉप, सेमिनार, निबंध और भाषण प्रतियोगिता, ड्राइंग,नाटकीय
कार्य, अभियान साहित्य का वितरण, युवा तथा सम्मेलन इत्यादि आयोजित कर के
अभियान का सन्देश लोगों तक पहुँचाने का कार्य किया जायेगा।
ने समाज
में बंधुता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक राज्यव्यापी स्तर पर अभियान शुरू
किया है। इस बंधुता अभियान का
उद्देश्य,
“भारत के संवैधानिक विचार को बढ़ावा देना है, जो अपने सभी नागरिकों को व्यक्ति की गरिमा और
राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता
बढ़ाने के लिए कार्य करने का अवसर प्रदान करता है।” यह अभियान 17 नवम्बर 2018 को
शुरू हुआ, जो 26 नवम्बर 2018 तक चलेगा। इस अभियान के तहत सामाजिक संवाद, वर्कशॉप, सेमिनार, निबंध और भाषण प्रतियोगिता, ड्राइंग,नाटकीय
कार्य, अभियान साहित्य का वितरण, युवा तथा सम्मेलन इत्यादि आयोजित कर के
अभियान का सन्देश लोगों तक पहुँचाने का कार्य किया जायेगा।
गौर तलब है कि, संविधान हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण आर्थात
इज्ज़त वाली ज़िन्दगी जीने की गारंटी देता है। किन्तु दुर्भाग्यवश नागरिकों के जीवन
स्तर में दिनोंदिन गिरावट ही हो रही है। लोग भूख से मर रहे हैं। सरकारी स्वास्थ्य
सेवा बदहाल है। धर्म, जाति,
भाषा और प्रान्त के नाम पर हिंसा हो रही है। देश
के नागरिकों की पहचान धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रीयता के बुनियाद पर बन गई है।
देश में या तो हिन्दू, मुस्लिम, सिख और
ईसाइ दिखता है या फिर गुजराती, पंजाबी, बिहारी, बंगाली या मराठी। भारतीयता कहीं खोती जा रही
है। देश के नागरिकों के बीच सामाजिक भेदभाव के अलावा आर्थिक विषमताएं भी चिंताजनक
स्थिति में पहुँच गई हैं।
इज्ज़त वाली ज़िन्दगी जीने की गारंटी देता है। किन्तु दुर्भाग्यवश नागरिकों के जीवन
स्तर में दिनोंदिन गिरावट ही हो रही है। लोग भूख से मर रहे हैं। सरकारी स्वास्थ्य
सेवा बदहाल है। धर्म, जाति,
भाषा और प्रान्त के नाम पर हिंसा हो रही है। देश
के नागरिकों की पहचान धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रीयता के बुनियाद पर बन गई है।
देश में या तो हिन्दू, मुस्लिम, सिख और
ईसाइ दिखता है या फिर गुजराती, पंजाबी, बिहारी, बंगाली या मराठी। भारतीयता कहीं खोती जा रही
है। देश के नागरिकों के बीच सामाजिक भेदभाव के अलावा आर्थिक विषमताएं भी चिंताजनक
स्थिति में पहुँच गई हैं।
संगठन के महासचिव अफसर
उस्मानी का कहना है कि, इस अभियान से नागरिक बंधुता के संवैधानिक मूल्यों
और अहमियत से अवगत होंगे, देश के चहुमुखी विकास के लिए शांति, एकता और
सौहाद्र की बुनियादी ज़रुरत के महत्त्व को समझ सकेंगे, व्यक्तियों और समुदायों के
बीच आपसी सहयोग के माध्यम से एक समग्र, मानवीय
और स्थायी विकास के संदर्भ में शांति, मानव
अधिकार और लोकतंत्र के मूल्यों से लोग अवगत हो सकेंगे तथा नागरिकों के बीच समता एवं न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक समाज की स्थापना की समझ पैदा होगी।
उस्मानी का कहना है कि, इस अभियान से नागरिक बंधुता के संवैधानिक मूल्यों
और अहमियत से अवगत होंगे, देश के चहुमुखी विकास के लिए शांति, एकता और
सौहाद्र की बुनियादी ज़रुरत के महत्त्व को समझ सकेंगे, व्यक्तियों और समुदायों के
बीच आपसी सहयोग के माध्यम से एक समग्र, मानवीय
और स्थायी विकास के संदर्भ में शांति, मानव
अधिकार और लोकतंत्र के मूल्यों से लोग अवगत हो सकेंगे तथा नागरिकों के बीच समता एवं न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक समाज की स्थापना की समझ पैदा होगी।