शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में अध्यनरत छात्रों का भविष्य अधर में

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों में नि:शुल्क अध्ययन करने वाले हज़ारों
ग़रीब छात्रों के सामने एक संकट खड़ा हो गया है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि नि:शुल्क
एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम
2009 के तहत वंचित और कमज़ोर वर्ग के छात्रों के लिए कक्षा 8 तक निजी स्कूलों में 25% आरक्षित सीटों पर नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान है. 
सर्वविदित है कि, देश में 1 अप्रैल 2010 को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 लागू होने के बाद उक्त 25 % आरक्षित सीटों पर वंचित और कमज़ोर वर्ग के छात्रों को शैक्षणिक
सत्र
2011 में पहली बार प्रवेश दिया गया था.
इन आरक्षित सीटों पर अध्यनरत हज़ारों बच्चों ने इस वर्ष अपनी कक्षा 8 तक की शिक्षा पूरी कर ली है और निजी स्कूलों के प्रबंधन ने
आठवीं कक्षा की शिक्षा पूरी कर चुके अपने कोटे के विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा जारी
रखने के लिए आगामी सत्र से पूरी फीस का भुगतान करने के लिए नोटिस जारी कर दिया है और
फ़ीस का भुगतान नहीं करने की स्थिति में उन्हें स्कूल छोड़ने को कहा गया है.
हम सब इस तथ्य से अवगत हैं कि, कोटे के तहत प्रवेश दिये गए बच्चों की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय
है और ये बच्चे निजी स्कूलों के फ़ीस का भुगतान नहीं कर सकते हैं. ज़ाहिर है कि
,
फ़ीस का भुगतान नहीं करने की स्थिति में इन बच्चों को निजी स्कूलों
को छोड़ना होगा और निम्न मानकों के स्कूलों में वापस जाना होगा
,
जो उनके लिए मनोवैज्ञानिक रूप से दर्दनाक सिद्ध होगा. ऐसा उन
ग़रीब परिवार के बच्चों के हित में नहीं होगा. उनका कैरियर बनने से पहले ही बिगड़ जायेगा.
एमपीजे ने भारत सरकार से देश के प्रत्येक बच्चे के लिए बारहवीं कक्षा तक नि:शुल्क
स्कूली शिक्षा की क़ानूनी गारंटी देने के लिए आरटीई अधिनियम में संशोधन की मांग करते
हुए प्रदेश सरकार से निवेदन करती है कि जब तक आरटीई अधिनियम में संशोधन नहीं हो जाता
,
इन हज़ारों बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए निजी स्कूलों
में
25%
आरक्षित कोटे के तहत शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों के लिए बारहवीं
कक्षा तक नि:शुल्क शिक्षा की प्रदानगी की वैकल्पिक व्यवस्था करने का कष्ट करे. 

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